ای به قم آفتـاب قلـب جهـان |
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دخـت مـوسی سـلالـۀ قـــرآن |
عمه و دخت و خواهر سه امام |
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مـــادر کــل عــالـم امکــــان |
تــو بـه چشـم ائمـه زهـرایی |
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بعـد زهـرا به قدر و عزت و شان |
زینـــب دوم بنــی الــزهــرا |
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عمـــۀ چـــار حجـــت یـزدان |
هـم وجــودت کـریمـۀ عتـرت |
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هــم ولایـــت حقیـقت ایمـان |
فیـض فیضیه از کرامت توست |
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شهـر قـم از تـو گشته مهد امان |
حــــرم یـــــازده ولـی خـدا |
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حـرم تــوست ای سپهـر مکـان |
مــدح تـو ای ملیکـۀ هستـی |
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وصـف تـــو ای یگــانـۀ دوران |
نه توان با هـزار دسـت نوشت |
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نـه تـوان گفت بـا هــزار زبـان |
صحن تو مسجـد الرسول همه |
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حـرم امن تـوست کعبــۀ جـان |
پــدر و مــادرم بـــه قـربانت |
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نـه، همـه جــان عــالمت قربان |
کـــوثـر کــوثـر رسـول خـدا |
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عصــمـت عصـمـت الله منّــان |
قـم جـلال مدینــه پیـدا کـرد |
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تـــا نهـادی قـدم بـه دیـدۀ آن |
گشـت روز ورود تــو در قــم |
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روز عیـــد کــرامت و احســان |
روز عیـد نــزول رحمــت هـا |
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روز عفــو و عنــایـت و غفــران |
اهل قــم از بــرای استقبــال |
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همـه بـا دستـه گـل شدند روان |
مرد و زن دور محملت گشتند |
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اشــک شوق همـه ز دیـده روان |
قم دل از گلشن بهشت گرفت |
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محملت بس که گشت گل باران |
همـه گفتنـد فـاطمه در حشر |
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پــای بنهــاده ای گنــه کـاران |
حرمت شیعیـان قـم ز تـو کرد |
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ستــم اهــل شـــام را جبــران |
کاش زینب به قم سفر می کرد |
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تـا نمی دیـد آن همـه طغیــان |
اهــل قـم کی بـرند مهمان را |
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گـه بـه بـزم شـراب و گه زنـدان |
جـای تو بیـت مـوسی خـزرج |
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جـای زینـب بـه گـوشۀ ویــران |
دور تو عالمان فقــه و اصــول |
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دور او ابن سعد و شمـر و سنان |